पश्चिमी सभ्यता में प्रेम संबंधों को मज़बूत करने के लिए वैलेंटाइन्स डे मनाया जाता है परंतु भारतीय संस्कृति में सैंकड़ों साल पहले ऐसे मज़बूत वैज्ञानिक उपायों का प्रावधान बना दिया गया जिनसे वैवाहिक संबंधों में पवित्रता एवं प्रेम सदा बना रहे। कार्तिक मास की चौथी तिथि को मनाया जाने वाला करवा चौथ व्रत प्राचीन भारतीय मनीषियों द्वारा बनाया गया ऐसा ही एक अचूक ज्योतिषीय उपाय है।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य देव जब तुला राशि में होते हैं तो उन्हें नीच का सूर्य कहा जाता है। ऐसा माना जाता है की उस समय वो कुछ विशेष अशुभ फल प्रदान करते हैं। सूर्य देव के अपनी नीच राशि में होने के कारण किस व्यक्ति को कितना शुभ-अशुभ फल मिलेगा, यह उनकी जन्मपत्री में विद्यमान अन्य ग्रहों की स्तिथि के आधार पर निर्धारित किया जा सकता है और जन्मपत्री के विस्तृत विश्लेषण के द्वारा जाना जा सकता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य देव को जीवन का कारक ग्रह माना गया है। परंतु तुला राशि में उनकी उपस्तिथि विधवा योग का निर्माण भी कर सकती है। विशेषकर कन्याओं की कुंडली में यह योग प्रभावी हो सकता है।
ज्योतिष शास्त्र के उद्भव का मूल प्रयोजन केवल आने वाली समस्याओं से अवगत कराना नहीं था अपितु उनसे निपटने के लिए सही समय पर सही उपाय कर लेना था। प्राचीन भारतीय मनीषियों ने करवा चौथ के आस-पास के दिनों में आकाश में बनने वाले इस नकारात्मक समीकरण के उपाय हेतु न केवल ज्योतिषीय अपितु योग एवं सांख्य दर्शन पर आधारित पंचतत्त्वों के संतुलन को आधार बनाया। जिस प्रकार मानव शरीर में सूर्य नाड़ी के प्रभाव को चंद्र नाड़ी संतुलित करती है, करवा चौथ के व्रत द्वारा भी लगभग वही संतुलन पैदा किया जाता है।
करवा चौथ के दिनों में बनने वाले नीच के सूर्य के कुप्रभावों से बचने के लिए हमारे विद्वान ऋषियों द्वारा उच्च के चन्द्रमा का उपयोग किया गया। क्योंकि उन दिनों में केवल चन्द्रमा ही अपनी उच्च राशि में होता है। चाहे वह पानी से भरा घड़ा (करवा) हो या पानी में चन्द्रमा को देख कर अर्क देने की क्रिया, ये सभी चन्द्रमा के शुभ प्रभावों को लेने में ही सहायक हैं। किस प्रकार सही समय पर सही दिशा में सही कर्म करके सही परिणामों को पैदा किया जा सकता है, करवा चौथ का व्रत उसका एक आदर्श उदहारण है। हैरानी की बात है की हज़ारों साल पहले सिद्ध मुनियों द्वारा दिए गए सूत्र आज भी सटीक और वांछित परिणाम देते हैं - फिर चाहे उन्हें न्यूमेरोवास्तु के रूप में घरों या ऑफिस में किया जाये या न्यूमेरोलॉजी के अंकों के रूप में आपके जीवन में।
सूरज ढलते अथवा रात्रि के समय किया जाने वाला कोई भी पूजन सूर्य की शक्ति को बड़ा नहीं सकता अपितु उसे क्षीण या दूर कर सकता है। इसलिए इस व्रत की मुख्य विधियां शाम से ही शुरू होती हैं। यहाँ तक की सर्गई खाने के लिए भी सूर्योदय से पहले का समय निर्देशित किया गया है। योगिक दर्शन व आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं भी इस बात को स्पष्ट करते हैं की दिन भर रखा जाने वाला निर्जल व्रत एक व्रती स्त्री के प्राणमय शरीर में सम्बंधित चक्रों को जागृत करके हॉर्मोन्स में संतुलन पैदा करता है। ये हॉर्मोन्स खुशहाल गृहस्थ जीवन के लिए परम आवश्यक हैं।
क्यों करवा चौथ मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिम भारत में मनाया जाता रहा ? दिशाओं, ग्रहों और अंकों के आपसी संबंधों पर आधारित न्यूमेरो-वास्तु के अनुसार उत्तर-पश्चिम दिशा चंद्रमा की दिशा है, इसलिए इसका सर्वाधिक प्रभाव भी उसी दिशा में होता है। शायद इसीलिए इस हिस्से में रहने वाले लोग भी ज़्यादा भावुक होते हैं।
न्यूमेरो-वास्तु के अनुसार, इस वर्ष जिन स्त्रियों की जन्मतिथि में अंकों का योग (जन्मांक) 8 आता हो, उन्हें करवा चौथ का व्रत रखने के साथ ही अपने घर की दक्षिण-पूर्व दिशा से गिफ़्ट में मिली नीले-काले व ग्रे रंग की वस्तुएँ एवं थैलियां हटा देनी चाहियें। जिन स्त्रियों का जन्मांक 9 आता हो उन्हें अपने घर की पश्चिम दिशा से लाल व मेहरून रंग को हटा देना चाहिए। इसी प्रकार 1 अंक वालों को दक्षिण-पश्चिम दिशा से जंग लगा सामान तुरंत हटा देना चाहिए। ऐसा करके आप न केवल अपने पति की लंबी आयु वरन सुखी व प्रेमपूर्ण दांपत्य जीवन को भी सुनिश्चित करेंगे।