हैरानी की बात है कि पुराणों के अनुसार जो भगवान शिव सन्यासी हैं सुखी गृहस्थ जीवन पाने के लिए उन्हीं सन्यासी भगवान से प्रार्थना की जाती है। अच्छा पति पाने के लिए लड़कियां सोमवार के व्रत रख कर उनकी उपासना करती हैं। अर्धनारीश्वर के रूप में भी सिर्फ़ वही नज़र आते हैं, कोई अन्य देव नहीं।
इसका मतलब कहीं न कहीं भगवान शिव के दोनों रूपों (शिव और शिवलिंग) में गृहस्थ जीवन के लिए कुछ महत्वपूर्ण सन्देश छुपे हुए हैं जिनको उनकी उपासना के द्वारा लोग अनजाने में अपने जीवन में उतार लाते हैं और उससे लाभान्वित होते हैं।
मनो-वैज्ञानिक रूप से देखे तो सुखी गृहस्थ जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात क्या है -
1. क्रोध को शांत रखना, और
2. सुनने की क्षमता होना (रिसेप्टिव होना )
यदि ये दोनों गुण आपके अंदर हैं तो आप एक सुखी गृहस्थ जीवन का आनंद ले सकते हैं। आप सभी लोग जानते हैं कि क्रोध एक अग्नि की तरह है जो आपके संबंधों और कार्यों में बाधा उत्पन्न कर सकता है। और अग्नि को शांत रखने के लिए जल सर्वाधिक आवश्यक है। ग़लतफ़हमियां या पुराने नकारात्मक अनुभवों की यादें इस क्रोध को बढ़ाने का काम करते हैं। ये एक तरह के मैल की तरह हैं जो अंतर्मन में जम जाते हैं और इनकी दुर्गन्ध हर उस आदमी को आती है जो इनके संपर्क में आता है। अतः ऐसे विचारों के मैल को धो कर निकालने की ज़रुरत होती है। इसके लिए फिर से जल (तत्त्व) की ही आवश्यकता पड़ती है।
दूसरे, यदि आपके पास सुनने की क्षमता है, यदि आप दूसरों की बात को शांति से पूरा सुन सकते हैं, उनको समझ सकते हैं, तो भी आप उनके साथ अच्छे सम्बन्ध बना सकते हैं। "ऊँकार थ्योरी ऑफ़ नंबर्स" के अनुसार अंक2 आपके अंदर वो रिसेप्टिविटी, वो सुनने की क्षमता देता है। और, एस्ट्रो-न्यूमरोलॉजी के अनुसार नंबर 2 भी जल तत्त्व या चंद्रमा को दर्शाता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, चन्द्रमा केवल जल ही नहीं अपितु मन का भी कारक ग्रह है। जन्मपत्री में चन्द्रमा दुर्बल होने पर मन भी कमज़ोर पड़ने लगता है। और तब उसे मज़बूत करने के लिए चन्द्रमा के अधीष्ठ देवता यानि भगवान शिव की उपासना करने के लिए कहा जाता है। चूँकि सोमवार का दिन भी चन्द्रमा को ही समर्पित है, अतः सोमवार के दिन व्रत-पूजा आदि किया जाता है।
श्रावण (सावन) मास में तो भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। इसके पीछे कईं पौराणिक कहानियाँ भी हैं पर वास्तविकता ये है कि श्रावण मास भी चन्द्रमा से ही सम्बंधित है कारण, इसका नाम चन्द्रमा के ही एक नक्षत्र (श्रवण) पे पड़ा है। और मज़े की बात है की श्रवण का अर्थ होता है सुनना। यानि, श्रावण के महीने में यदि आप जल के अधीष्ठ देव भगवान भोलेनाथ शिव की उपासना करेंगे तो आप के अंदर श्रवण (सुनने) की क्षमता का विकास होगा। आप ज़्यादा सुन और समझ पाएंगे। समस्या की जड़ तक पहुँच पाएंगे जो कि आपको समाधान तक पहुँचने में सहायक होगा। इसलिए श्रावण मास में की गयी पूजा-उपासना केवल सुखी गृहस्थ ही नहीं बल्कि जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी सफ़लता और उन्नति लाने में सहायक होती है। इसलिए बहुत से लोग श्रावण मास में पवित्र नदियों का जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।
समस्त देवी-देवताओं में केवल भगवान शिव ही हैं जो अपने मस्तक पर चन्द्रमा को धारण करते हैं। उनके इस रूप का अर्थ है उनका शांत स्वभाव। अपने पुरुषत्त्व और उसके अभिमान को नीचा रखते हुए वो हमेशा अपने भक्त की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास ही करते हैं। शिवलिंग पर जल चढ़ाना भी अपनी ईगो, अहंकार और मन के नकारात्मक विचारों को बहाने का सूचक है। जैसे ही हमारे मन से जाने-अनजाने जमा हुआ वो मैल निकल जाता है तो लोग हमारी तरफ आकर्षित होने लगते हैं। परमेश्वर और स्वयं के साथ हमारा गहरा जुड़ाव होता है जो हमें अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करने में सहायक होता है। यही कारण है कि श्रावण मास में भगवान शिव का पूजन एक अच्छा जीवनसाथी और एक खुशहाल जीवन पाने में सहायक होता है।